राहत भरा फैसला

हिमाचल प्रदेश में नियंत्रित खनन को मंजूरी मिलना कई मायनों में महत्वपूर्ण है। प्रदेश में नई खनन नीति लागू होने से अब एक हेक्टेयर भूमि से खनन की अनुमति दीर्घकाल के लिए मिल सकेगी। प्रदेश सरकार भी 25 हेक्टेयर भूमि में खनन की अनुमति दे सकेगी। खनन के लिए मशीनों पर रोक का फैसला न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बेहतर कदम है बल्कि बेरोजगार युवाओं के लिए भी रोजगार के अवसर खोलने वाला है। सुखद यह है कि भवन निर्माण सामग्री प्रदेश में कहीं भी लाई-ले जाई तो जा सकेगी, लेकिन इसे प्रदेश के बाहर नहीं भेजा जा सकेगा। प्रदेश में खनन पर लागू प्रतिबंध के कारण महंगे दाम के कारण प्रदेश में भवन निर्माण व विकासात्मक कार्य रोकना सरकार व आम जनता की मजबूरी थी क्योंकि निर्माण सामग्री उनके वित्तीय नियोजन की सीमा से बाहर हो चुकी थी। सरकारी योजनाओं के तहत आवंटित धन से कार्य निपटाना ठेकेदारों व विभागों के लिए मुश्किल हो रहा था। कुल मिलाकर खनन पर लगे प्रतिबंध का सबसे ज्यादा फायदा किसी ने उठाया तो वह खनन माफिया ही था। रेत-बजरी के दाम प्रतिबंध के पहले के दामों से दो-तीन गुणा तक बढ़ा दिए गए थे। क्रशर मालिकों ने भी रेत-बजरी व रोड़ी की कीमतें 50 से 60 प्रतिशत तक बढ़ा दी। इससे प्रदेश में भवन निर्माण बहुत महंगा हो गया था। खनन माफिया तो मुनाफा कूटता रहा लेकिन प्रदेश सरकार के राजस्व को नुकसान पहुंचता रहा। उपभोक्ता अलग छिलते रहे। सरकारी विभागों ने हालांकि चालान की मुहिम भी चलाई और भारी जुर्माना भी वसूला, लेकिन खनन माफिया बेपरवाह होकर रेत-बजरी को महंगे दाम पर बेचने के साथ ही प्रदेश से बाहर भी बेखौफ भेजता रहा। इस फैसले के बाद अब लोगों को रेत-बजरी के लिए अधिक पैसे नहीं चुकाने पड़ेंगे व रुके हुए निर्माण के काम फिर से शुरू हो सकेंगे। यह देखना भी जरूरी होगा कि मंजूरी की आड़ में खनन माफिया फिर से सक्रिय न हो जाए। कहीं ऐसा न हो कि लोगों को जिस दर्द से निजात दिलाने के लिए सरकार ने पैरवी की है, वह कागजों तक ही सिमटी रहे। इसके लिए सरकार को निगरानी तंत्र को मजबूत बनाना होगा। खनन के लिए जिन अधिकारियों, विभागों व पंचायतों को दायित्व सौंपा गया है, उन्हें कर्तव्य का निर्वहन पूर्णत: ईमानदारी से करना होगा ताकि जनहित का फैसला जनता के हित की रक्षा कर सके और इसके अपेक्षित लाभ मिल सकें।